Wednesday, February 21, 2007

मैनें जमीं पर चांद देखा

इस यौवन में है स्मरण
अपना बचपन,
वो किस्सा का उद्धरण-
श्वेत दुधिया आभा प्रकीर्ण,
मनोहर सुन्दरता,
अद्वितीय उज्ज्वल प्रभा
पारलौकिक तेज-ओज,
दिव्य-सौन्दर्य समाहित
रजनी के तिमिर तल पर
चांद रहता है ।
पारिजात के पुष्प खिलते,
फिर सहज छा जाता -
चिर-बसंत-बहार,
खूश्बू की खुमार,
मोतियों की-सी कांति, जब-जब
चांद हंसता है ।
परितः बिछ जाता
एक अलौकिक वृत्त
जगसमादरित
स्वतः स्वीकार्य आकर्षण
बिछती है चांदनी
नृत्य करता मुग्ध मन से मोर
और प्रणय-अनल में तपता चकोर
जब-जब
चांद खिलता है ।
विशाल नभथाल में
तारे मंडराते इर्द-गिर्द
और साथ लेकर
'प्रसन्न चेहरा', 'मुस्कान', 'हर्ष',
'गुदगुदी',
'अचम्भा', 'हिचकियां',
'अनिमेष नेत्र'
सप्तर्षि मिलते राह में
दुनियां की नजरें घूमती
उसके कदम के साथ ही जब
चांद चलता है।
"पूनम हा !"-
वाक् मेरा उनके लिए
फिर अचानक-
वह रौशनी कुछ मंद पड़ती,
शर्म का आंचल दिखा,
धीरे-धीरे मुखरा छिपा;
मन में उसे देखने को
पल भर मैं आंखें बंद किया
फिर खोला, तो ऐसा लगा-
अपनी तारीफ सुनकर,
बादलों की ओट में वो
चांद छुपता है ।
मेरी अभिलाषा है-
मन की शांति, शुकून और चैन के लिए
हमेशा देखता रहूं
चांद का यह सुस्मित चेहरा;
पर न जाने क्यों
सबसे शरमाकर
या मुझसे रूठकर ही
यह लंबी अमावस को चला जाता है
और तब
स्वाति की आस लगाए चातक की तरह,
घन-बूंद को तरसते मोर की तरह,
जल-हीन मीन की तरह
यह मेरा उद्विग्न मन
तड़पता रहता है जब
चांद सोता है ।
अभिलाषा है उससे दोस्ती की,
पर उसे कुछ नहीं बोलता
कि वो कहीं रूठ न जाए...
बचपन में कहानी सुनकर आस जगी थी,
और इंतजार में गुजारा
जवानी तक यह लंबा सफर,
अब इसे नहीं खोना चाहता;
कुछ और मुझे हासिल हो, न हो,
पर यह क्या कम है कि
जिसे लोग आसमां में देखते हैं
इतने करीब से, अपनी नजरों से
मैंने जमीं पर चांद देखा ।

12 comments:

Anonymous said...
This comment has been removed by a blog administrator.
Anonymous said...

bahut hi achchhi kavita hai. mai ise padha to mujhe bhi 'unki' yaad aa gayi....
-------Ranjan Rakesh

Anonymous said...

bahut hi achchhi kavita hai. mai ise padha to mujhe bhi 'unki' yaad aa gayi....
-------Ranjan Rakesh

Anonymous said...

कास हम भी चांद को इस तराह से निहार पाते। हे DEAR चांद की चांदनी बहुत गहरी होती है परन्तु बाद की अंधेरी ......... Not tolerable for any one. I think u have very deep experience, its very interesting as well as ......... u know.

Jakhar SR

Anonymous said...

चांद रहता है ।
चांद हंसता है ।
चांद खिलता है ।
चांद चलता है।
चांद छुपता है ।
चांद सोता है ।

मैंने जमीं पर चांद देखा - badi acchi kavita lagi,jo bhi samajh mein aya , accha laga..
age oor likhte rahiye.

Brijesh.

Anonymous said...

hi vijay,
mujhe aap ki kavita bahut pasand aye. Mein apse dosti karna chahti hoon.

With love,
Natasha.

विजय said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

क्या बात है... बंधु । चांद तो मैने भी देखे थे.. पर ऐसा उकेर नहीं पाया ...खैर कोई बात नहीं आपका पढ़ा तो लगा समझो मैनें ही लिखा है..
सचमुच जमीन पर अपना चांद देखने पर बिल्कुल ऐसा ही एहसास होता है...

Anonymous said...

अद्भुत । डूब गया था मैं.... आपकी चांद- दर्शन के feelings में... बहुत लगा दोस्त ...क्या खूब लिखते हो।

Unknown said...

बन्धु !
क्या बात है?
आपकी कृति अति प्रसंशनीय है,
मै अपने सम्पूर्ण आँफिस की तरफ से आप से भविष्य में इसी प्रकार के उत्तम लेख की कामना करता हूँ।
जय माता दी।

--- विनीत कुमार गुप्ता
Software Engineer
( Samtech Infonet Ltd.)

Kapeesh Gaur said...

vijay ji aapke blog ke darshan kiye accha lag kabhi hamare yaha bhi padhariye swagat hai http://navakash.blogspot.com

Divya said...

Heart touching h .sir aapne Mano Dil ke sari feelings Ko words me utaar diya h .keep it up ...